अथर्ववेद (कांड 1)
नम॑स्ते राजन्वरुणास्तु म॒न्यवे॒ विश्वं॒ ह्यु॑ग्र निचि॒केषि॑ द्रु॒ग्धम् । स॒हस्र॑म॒न्यान्प्र सु॑वामि सा॒कं श॒तं जी॑वाति श॒रद॒स्तवा॒यम् ॥ (२)
हे तेजस्वी वरुण! तुम्हारे क्रोध के लिए नमस्कार है. तुम सभी प्राणियों द्वारा किए गए अपराधों को जानते हो. मैं हजारों अपराधी पुरुषों को तुम्हारी सेवा में भेज रहा हूं. ये मनुष्य आप के प्रति निष्ठा वाले बन कर सौ वर्ष तक जीवित रहें. (२)
O brilliant Varun! Hello to your anger. You know the crimes committed by all beings. I am sending thousands of criminal men to your service. May these people become loyal to you and live for a hundred years. (2)