हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 1.17.4

कांड 1 → सूक्त 17 → मंत्र 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 1)

अथर्ववेद: | सूक्त: 17
परि॑ वः॒ सिक॑तावती ध॒नूर्बृ॑ह॒त्य॑क्रमीत् । तिष्ठ॑ते॒लय॑ता॒ सु क॑म् ॥ (४)
हे पथरी रोग उत्पन करने वाली नाड़ी! हे धनु और बृहती नाड़ी! तुम रुधिर प्रवाह के सभी मार्गो को चारों ओर से घेर कर फैली हुई हो. तुम रक्त स्राव रहित बनो तथा इस जन का सुख बढ़ाओ. (४)
O nerve that causes stone disease! O Sagittarius and brihati nadi! You surround all the routes of blood flow and spread it. You become bloodless and increase the happiness of this person. (4)