हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 1.20.4

कांड 1 → सूक्त 20 → मंत्र 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 1)

अथर्ववेद: | सूक्त: 20
शा॒स इ॒त्था म॒हाँ अ॑स्यमित्रसा॒हो अ॑स्तृ॒तः । न यस्य॑ ह॒न्यते॒ सखा॒ न जी॒यते॑ क॒दा च॒न ॥ (४)
हे इंद्र! आप शासक और नियंता होने के कारण महान गुणों से युक्त हैं. आप शत्रुओं को पराजित करने वाले हैं. आप की मित्रता प्राप्त करने वाला पुरुष कभी पराजित नहीं होता. शत्रु कभी भी उस का अपमान नहीं कर पाते. (४)
O Indra! You are endowed with great qualities as a ruler and controller. You are going to defeat enemies. A man who befriends you is never defeated. Enemies can never insult him. (4)