अथर्ववेद (कांड 1)
नमः॑ शी॒ताय॑ त॒क्मने॒ नमो॑ रू॒राय॑ शो॒चिषे॑ कृणोमि । यो अ॑न्ये॒द्युरु॑भय॒द्युर॒भ्येति॒ तृती॑यकाय॒ नमो॑ अस्तु त॒क्मने॑ ॥ (४)
मैं शीत उत्पन्न करने वाले ज्वर को नमस्कार करता हूं. मैं ठंड लगने के बाद चढ़ने वाले एवं शोककारक ज्वर को प्रणाम करता हूं. जो ज्वर प्रतिदिन दूसरे दिन एवं तीसरे दिन आता है, मैं उस के लिए नमस्कार करता हूं. (४)
I salute the cold fever. I salute the rising and mournful fever after the cold. I salute the fever that comes every day on the second day and the third day. (4)