हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 1.3.2

कांड 1 → सूक्त 3 → मंत्र 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 1)

अथर्ववेद: | सूक्त: 3
वि॒द्मा श॒रस्य॑ पि॒तरं॑ मि॒त्रं श॒तवृ॑ष्ण्यम् । तेना॑ ते त॒न्वे॑३ शं क॑रं पृथि॒व्यां ते॑ नि॒षेच॑नं ब॒हिष्टे॑ अस्तु॒ बालिति॑ ॥ (२)
हम सैकड़ों सामर्थ्यो वाले एवं बाण के पिता मित्र अर्थात्‌ सूर्य को जानते हैं. हे रोगी मनुष्य! इसी बाण से मैं तेरे मूत्रादि रोगों को नष्ट करता हूं. तेरे पेट में रुका हुआ मूत्र बाहर निकल कर पृथ्वी पर गिरे. (२)
We know the friend of hundreds of powers and the father of arrows, that is, the Sun. O sick man! With this arrow, I destroy your urinary diseases. The urine stuck in your stomach came out and fell on the earth. (2)