हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद (कांड 1)

अथर्ववेद: | सूक्त: 5
आपो॒ हि ष्ठा म॑यो॒भुव॒स्ता न॑ ऊ॒र्जे द॑धातन । म॒हे रणा॑य॒ चक्ष॑से ॥ (१)
हे जल! आप सभी प्रकार का सुख देने वाले हैं. अन्न आदि सुखों का उपभोग करने के इच्छुक हम सब को आप उन के उपभोग की शक्ति प्रदान करें. आप हमें महान एवं रमणीय आनंद स्वरूप ब्रह्म के साक्षात्कार का सामर्थ्य दें. (१)
O water! You are going to give all kinds of happiness. May you give all of us the power to consume them to all those who want to consume food etc. May you give us the power to interview Brahma, the great and delightful form of bliss. (1)

अथर्ववेद (कांड 1)

अथर्ववेद: | सूक्त: 5
यो वः॑ शि॒वत॑मो॒ रस॒स्तस्य॑ भाजयते॒ह नः॑ । उ॑श॒तीरि॑व मा॒तरः॑ ॥ (२)
जिस प्रकार माताएं अपनी इच्छा से दूध पिला कर बालकों को पुष्ट करती हैं, उसी प्रकार हे जल! आप अपने अत्यधिक कल्याणकारी रस का हमें अधिकारी बनाएं. (२)
Just as mothers nourish children by feeding them milk of their own free will, so do they water! You make us possess your highly beneficial juices. (2)

अथर्ववेद (कांड 1)

अथर्ववेद: | सूक्त: 5
तस्मा॒ अरं॑ गमाम वो॒ यस्य॒ क्षया॑य॒ जिन्व॑थ । आपो॑ ज॒नय॑था च नः ॥ (३)
हे जल! हम जिस अन्न आदि को पा कर तृप्त होते हैं, उसे प्राप्त करने के लिए हम आप को पर्याप्त रूप में पाएं. हे जल! आप पर्याप्त रूप में आ कर हमें तृप्त करें. (३)
O water! We get enough of you to get the food etc. we get. O water! You come in sufficient form and satisfy us. (3)

अथर्ववेद (कांड 1)

अथर्ववेद: | सूक्त: 5
ईशा॑ना॒ वार्या॑णां॒ क्षय॑न्तीश्चर्षणी॒नाम् । अ॒पो या॑चामि भेष॒जम् ॥ (४)
मैं धनों के स्वामी एवं सुख साधन प्रदान कर के गतिशील मनुष्यों को एक स्थान पर बसाने वाले जल की ओषधि के रूप में याचना करता हूं. (४)
I pray for water as a medicine to settle the moving human beings in one place by providing the swami of wealth and comforts. (4)