अथर्ववेद (कांड 1)
ईशा॑ना॒ वार्या॑णां॒ क्षय॑न्तीश्चर्षणी॒नाम् । अ॒पो या॑चामि भेष॒जम् ॥ (४)
मैं धनों के स्वामी एवं सुख साधन प्रदान कर के गतिशील मनुष्यों को एक स्थान पर बसाने वाले जल की ओषधि के रूप में याचना करता हूं. (४)
I pray for water as a medicine to settle the moving human beings in one place by providing the swami of wealth and comforts. (4)