हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 10.1.8

कांड 10 → सूक्त 1 → मंत्र 8 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 10)

अथर्ववेद: | सूक्त: 1
यस्ते॒ परूं॑षि संद॒धौ रथ॑स्येव॒र्भुर्धि॒या । तं ग॑च्छ॒ तत्र॒ तेऽय॑न॒मज्ञा॑तस्ते॒ऽयं जनः॑ ॥ (८)
हे कृत्या! बढ़ई जिस प्रकार रथ के अंगों को जोड़ता है, उसी प्रकार जिस ने बुद्धिमत्ता के साथ तेरी हड्डियों को जोड़ा है, तू उसी के समीप लौट जा. तेरा गंतव्य वही है. मैं तेरा अपरिचित हूं. (८)
O act! Just as the carpenter connects the parts of the chariot, so you return to him who has connected your bones with wisdom. Your destination is the same. I am unfamiliar with you. (8)