हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 10.2.23

कांड 10 → सूक्त 2 → मंत्र 23 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 10)

अथर्ववेद: | सूक्त: 2
ब्रह्म॑ दे॒वाँ अनु॑ क्षियति॒ ब्रह्म॒ दैव॑जनी॒र्विशः॑ । ब्रह्मे॒दम॒न्यन्नक्ष॑त्रं॒ ब्रह्म॒ सत्क्ष॒त्रमु॑च्यते ॥ (२३)
ब्रह्म देवों के अनुकूल रहता है तथा ब्रह्म ही दैवी प्रजाओं के अनुकूल व्यवहार करता है. ब्रह्म ही क्षत्र का अभाव है और ब्रह्म ही उत्तम धन कहलाता है. (२३)
Brahma is compatible with the gods and Brahman behaves according to the divine subjects. Brahman is the absence of the region and Brahman is called the best wealth. (23)