हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 10.3.14

कांड 10 → सूक्त 3 → मंत्र 14 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 10)

अथर्ववेद: | सूक्त: 3
यथा॒ वात॑श्चा॒ग्निश्च॑ वृ॒क्षान्प्सा॒तो वन॒स्पती॑न् । ए॒वा स॒पत्ना॑न्मे प्साहि॒ पूर्वा॑ञ्जा॒ताँ उ॒ताप॑रान्वर॒णस्त्वा॒भि र॑क्षतु ॥ (१४)
हे वरण वृक्ष से निर्मित मणि! वायु एवं अग्नि जिस प्रकार वृक्षों के पास जा कर उन्हें जला डालते हैं, उसी प्रकार तुम मेरे पूर्ववर्ती और बाद में होने वाले शत्रुओं का विनाश करो. (१४)
O gem made of the varan tree! Just as air and agni go to trees and burn them, so destroy my past and later enemies. (14)