हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 10.3.24

कांड 10 → सूक्त 3 → मंत्र 24 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 10)

अथर्ववेद: | सूक्त: 3
यथा॒ यशः॑ प्र॒जाप॑तौ॒ यथा॒स्मिन्प॑रमे॒ष्ठिनि॑ । ए॒वा मे॑ वर॒णो म॒णिः की॒र्तिं भूतिं॒ नि य॑च्छतु । तेज॑सा मा॒ समु॑क्षतु॒ यश॑सा॒ सम॑नक्तु मा ॥ (२४)
जिस प्रकार प्रजापति में और परमेष्ठी में यश व्याप्त है, उसी प्रकार वरण वृक्ष से निर्मित यह मणि मुझ में कीर्ति और ऐश्वर्य स्थापित करे तथा मुझे तेज और यश से सुशोभित करे. (२४)
Just as fame prevails in Prajapati and Parameshti, may this gem made of varan tree establish fame and opulence in me and adorn me with glory and glory. (24)