हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 10.5.38

कांड 10 → सूक्त 5 → मंत्र 38 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 10)

अथर्ववेद: | सूक्त: 5
दिशो॒ ज्योति॑ष्मतीर॒भ्याव॑र्ते । ता मे॒ द्रवि॑णं यच्छन्तु॒ ता मे॑ ब्राह्मणवर्च॒सम् ॥ (३८)
मैं प्रकाश से पूर्व दिशाओं का अनुवर्तन करता हूं. वे दिशाएं मुझे धन प्रदान करें एवं ब्रह्म तेज दें. (३८)
I follow the directions east of the light. May those directions give me wealth and give Brahm tej. (38)