हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 10.8.24

कांड 10 → सूक्त 8 → मंत्र 24 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 10)

अथर्ववेद: | सूक्त: 8
श॒तं स॒हस्र॑म॒युतं॒ न्यर्बुदमसंख्ये॒यं स्वम॑स्मि॒न्निवि॑ष्टम् । तद॑स्य घ्नन्त्यभि॒पश्य॑त ए॒व तस्मा॑द्दे॒वो रो॑चत ए॒ष ए॒तत् ॥ (२४)
सौ, एक हजार, दस हजार, एक अरब एवं अनगिनती दिवस इसी सूर्य में व्याप्त हैं. वे दिवस इस के देखतेदेखते ही आघात करते हैं. इसी कारण यह देव अर्थात्‌ सूर्य इस विश्व को प्रकाशित करता है. (२४)
Hundred, one thousand, ten thousand, one billion and countless days pervade this sun. Those days are traumatized as soon as they see it. That is why this god, i.e. the Sun, illuminates this world. (24)