हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 11.1.18

कांड 11 → सूक्त 1 → मंत्र 18 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 11)

अथर्ववेद: | सूक्त: 1
ब्रह्म॑णा शु॒द्धा उ॒त पू॒ता घृ॒तेन॒ सोम॑स्यां॒शव॑स्तण्डु॒ला य॒ज्ञिया॑ इ॒मे । अ॒पः प्र वि॑शत॒ प्रति॑ गृह्णातु वश्च॒रुरि॒मं प॒क्त्वा सु॒कृता॑मेत लो॒कम् ॥ (१८)
ये चावल मंत्र के द्वारा शुद्ध तथा जल के द्वारा धोए गए एवं अमृत के अंश हैं. यज्ञ के योग्य ये चावल बटलोई में भरे हुए जल में प्रवेश करें. हे चावल! बटलोई तुम्हें स्वीकार करे. यजमान इस ब्रह्मौदन को पका कर पुण्य करने वालों के लोक अर्थात्‌ स्वर्ग को प्राप्त हो. (१८)
These rice is pure by mantra and washed by water and part of nectar. Enter the water filled in this rice batloi eligible for yajna. Hey rice! Batloi accept you. The host should cook this Brahmaudan and attain the world of those who do virtue, that is, heaven. (18)