हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 11.10.31

कांड 11 → सूक्त 10 → मंत्र 31 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 11)

अथर्ववेद: | सूक्त: 10
सूर्य॒श्चक्षु॒र्वातः॑ प्रा॒णं पुरु॑षस्य॒ वि भे॑जिरे । अथा॒स्येत॑रमा॒त्मानं॑ दे॒वाः प्राय॑च्छन्न॒ग्नये॑ ॥ (३१)
सूर्य ने पुरुष के नयनों को तथा वायु ने पुरुष के प्राणों को मृत्यु के बाद ले लिया. प्राणों और इंद्रियों के अतिरिक्त पुरुष के शरीर को देवों ने अग्नि को दे दिया. (३१)
The sun took the eyes of the man and the wind took the life of the man after death. In addition to the pranas and senses, the man's body was given to the agni by the gods. (31)