अथर्ववेद (कांड 11)
अ॒मा घृ॒तं कृ॑णुते॒ केव॑लमाचा॒र्यो भू॒त्वा वरु॑णो॒ यद्य॒दैच्छ॑त्प्र॒जाप॑तौ । तद्ब्र॑ह्मचा॒री प्राय॑च्छ॒त्स्वान्मि॒त्रो अध्या॒त्मनः॑ ॥ (१५)
वरुण देव आचार्य हो कर जल को ही उत्पन्न करते हैं. वह वरुण अपने जनक प्रजापति अर्थात् ब्रह्म से जो चाहता है, मित्र देव बन कर अपने ब्रह्मचर्य के माहात्म्य के द्वारा अपने शरीर से ही प्राप्त कर लेता है. (१५)
Varun Dev, being acharya, produces water only. That Varuna gets whatever he wants from his janak Prajapati i.e. Brahma, by becoming a friend god and getting it from his body through the greatness of his celibacy. (15)