हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 12.1.11

कांड 12 → सूक्त 1 → मंत्र 11 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 12)

अथर्ववेद: | सूक्त: 1
गि॒रय॑स्ते॒ पर्व॑ता हि॒मव॒न्तोऽर॑ण्यं ते पृथिवि स्यो॒नम॑स्तु । ब॒भ्रुं कृ॒ष्णां रोहि॑णीं वि॒श्वरू॑पां ध्रु॒वां भूमिं॑ पृथि॒वीमिन्द्र॑गुप्ताम् । अजी॒तोऽह॑तो॒ अक्ष॒तोऽध्य॑ष्ठां पृथि॒वीमह॑म् ॥ (११)
हे पृथ्वी! तेरे बर्फ से ढके हुए पर्वत एवं घने वन हमें सुख प्रदान करें. मैं इंद्र देव के द्वारा सुरक्षित पृथ्वी पर इस प्रकार प्रतिष्ठित रहूं कि न मेरा विनाश हो तथा न मैं किसी से परिचित होऊं. (११)
O earth! May your snow-covered mountains and dense forests give us happiness. I should be established on the earth safe by Indra Dev in such a way that I am neither destroyed nor will I be familiar with anyone. (11)