अथर्ववेद (कांड 12)
म॒ल्वं बिभ्र॑ती गुरु॒भृद्भ॑द्रपा॒पस्य॑ नि॒धनं॑ तिति॒क्षुः । व॑रा॒हेण॑ पृथि॒वी सं॑विदा॒ना सू॑क॒राय॒ वि जि॑हीते मृ॒गाय॑ ॥ (४८)
पुण्य एवं पाप कर्म करने वालों के शवों को तथा शत्रु को भी धारण करने वाली जिस पृथ्वी को वाराह खोज रहे थे, वह पृथ्वी उन वाराह को ही प्राप्त हुई थी. (४८)
The earth that Varaha was looking for the bodies of those who committed virtue and sin and also the enemy, that earth was found by those Varaha. (48)