हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 12.2.30

कांड 12 → सूक्त 2 → मंत्र 30 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 12)

अथर्ववेद: | सूक्त: 2
मृ॒त्योः प॒दं यो॒पय॑न्त॒ एत॒ द्राघी॑य॒ आयुः॑ प्रत॒रं दधा॑नाः । आसी॑ना मृ॒त्युं नु॑दता स॒धस्थेऽथ॑ जी॒वासो॑ वि॒दथ॒मा व॑देम ॥ (३०)
मृत्यु के लक्ष्य को भ्रमित करने वाले ऋषि आयु से परिपूर्ण हैं. तुम भी इस मृत्यु को भगाओ. फिर हम जीवन में यज्ञ की स्तुति करें. (३०)
The sages who confuse the goal of death are full of age. You also drive away this death. Then let us praise the yajna in life. (30)