हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद (कांड 12)

अथर्ववेद: | सूक्त: 3
पुमा॑न्पुं॒सोऽधि॑ तिष्ठ॒ चर्मे॑हि॒ तत्र॑ ह्वयस्व यत॒मा प्रि॒या ते॑ । याव॑न्ता॒वग्रे॑ प्रथ॒मं स॑मे॒यथु॒स्तद्वां॒ वयो॑ यम॒राज्ये॑ समा॒नम् ॥ (१)
हे पुरुषार्थ वाले पुरुष! तू इस पशु धर्म पर चढ़ जा. तू अपने प्रिय व्यक्तियों को भी बुला ले. पहले जितने पतिपात्नियों ने इस कार्य को किया, उन का और तुम्हारा समान फल हो. (१)
O man of effort! You go ahead with this animal dharma. Call your loved ones too. May all the husbands who have done this work before have the same fruit and you. (1)

अथर्ववेद (कांड 12)

अथर्ववेद: | सूक्त: 3
ताव॑द्वां॒ चक्षु॒स्तति॑ वी॒र्याणि॒ ताव॒त्तेज॑स्तति॒धा वाजि॑नानि । अ॒ग्निः शरी॑रं सचते य॒दैधो॑ऽधा प॒क्वान्मि॑थुना॒ सं भ॑वाथः ॥ (२)
स्वर्ग में तुम्हारे शरीरों को यह अग्नि ही संचित करेगी. उस समय तुम पक्व ओदन के प्रभाव से इसी रूप में स्वर्ग में होओगे. तुम से उत्पन्न शिशु को भी दर्शन शक्ति तथा उसी प्रकार का तेज प्राप्त होगा. यह शब्दात्मक यज्ञ भी इसी प्रकार अग्नि के योग्य होगा. (२)
This agni will store your bodies in heaven. At that time you will be in heaven in this form under the influence of Pakva Odan. The child born of you will also get the power of vision and the same kind of radiance. This verbal yajna will also be worthy of agni in the same way. (2)

अथर्ववेद (कांड 12)

अथर्ववेद: | सूक्त: 3
सम॑स्मिंल्लो॒के समु॑ देव॒याने॒ सं स्मा॑ स॒मेतं॑ यम॒राज्ये॑षु । पू॒तौ प॒वित्रै॒रुप॒ तद्ध्व॑येथां॒ यद्य॒द्रेतो॒ अधि॑ वां संब॒भूव॑ ॥ (३)
इस ओदन के प्रभाव से इस लोक में तुम दोनों साथ रहो. तुम यम मार्ग में तथा यह मेरे यज्ञ में साथ ही रहो. इन पवित्र यज्ञों को पूरा करने के कारण तुम पवित्र हो चुके हो. तुम ने जिसजिस कार्य के लिए संकेत किया, तुम उन कमो के फल प्राप्त करो. (३)
Stay together in this world with the effect of this odan. You stay with you on the way yama and it in my yajna. You have become pure because of the completion of these holy sacrifices. Whatever work you have indicated for, you receive the fruits of those people. (3)

अथर्ववेद (कांड 12)

अथर्ववेद: | सूक्त: 3
आप॑स्पुत्रासो अ॒भि सं वि॑शध्वमि॒मं जी॒वं जी॑वधन्याः स॒मेत्य॑ । तासां॑ भजध्वम॒मृतं॒ यमा॒हुर्यमो॑द॒नं पच॑ति वां॒ जनि॑त्री ॥ (४)
हे पति और पत्नियो! तुम दीर्घरूपी जल हो. इस जीवन में धन्य होते हुए प्रवेश करो. तुम्हारा उत्पादन जल्द ही ओदन को पकाता है. तुम उसी जल के अमृतमय अंश का सेवन करो. (४)
Husband and wife! You are long water. Enter this life blessed. Your produce soon cooks odan. You consume the nectar part of the same water. (4)

अथर्ववेद (कांड 12)

अथर्ववेद: | सूक्त: 3
यं वां॑ पि॒ता पच॑ति॒ यं च॑ मा॒ता रि॒प्रान्निर्मु॑क्त्यै॒ शम॑लाच्च वा॒चः । स ओ॑द॒नः श॒तधा॑रः स्व॒र्ग उ॒भे व्याप॒ नभ॑सी महि॒त्वा ॥ (५)
माता और पिता यदि वाणी जन्य पाप से अथवा अन्य पाप से निवृत्त होने के लिए ओदन पकाते हैं तो वह ओदन अपनी महिमा से स्वर्ग और द्यावा पृथ्वी में व्याप्त होता है. (५)
If the mother and father cook odan to get rid of speech-borne sin or other sin, then that odan pervades heaven and dyava earth with its glory. (5)

अथर्ववेद (कांड 12)

अथर्ववेद: | सूक्त: 3
उ॒भे नभ॑सी उ॒भयां॑श्च लो॒कान्ये यज्व॑नाम॒भिजि॑ताः स्व॒र्गाः । तेषां॒ ज्योति॑ष्मा॒न्मधु॑मा॒न्यो अग्रे॒ तस्मि॑न्पु॒त्रैर्ज॒रसि॒ सं श्र॑येथाम् ॥ (६)
हे पति और पत्नी! यजमान आकाश और पृथ्वी पर तथा जिन लोकों में अधिकार पाते हैं, उन में जो प्रकाशित और मधुमय लोक है. उस लोक को अथवा पृथ्वी और स्वर्ग दोनों लोकों को प्राप्त करो तथा संतान से संपन्न होते हुए वृद्धावस्था तक जीवित रहो. (६)
Oh husband and wife! Among the worlds where the hosts have authority in the sky and the earth, there is a light and sweet world. Attain that world or both the worlds of earth and heaven and live until old age while being rich in children. (6)

अथर्ववेद (कांड 12)

अथर्ववेद: | सूक्त: 3
प्राचीं॑प्राचीं प्र॒दिश॒मा र॑भेथामे॒तं लो॒कं श्र॒द्दधा॑नाः सचन्ते । यद्वां॑ प॒क्वं परि॑विष्टम॒ग्नौ तस्य॒ गुप्त॑ये दंपती॒ सं श्र॑येथाम् ॥ (७)
हे पति और पत्नी! तुम पूर्व की ओर बढ़ो. उस स्वर्ग पर श्रद्धालु जन ही चढ़ पाते हैं. बुम ने जो पका हुआ ओदन अग्नि पर रखा है उस की रक्षा के लिए खड़े रहो. (७)
O husband and wife! You move east. Only devotees can climb that heaven. Stand up to protect the ripe odan that Bum has placed on agni. (7)

अथर्ववेद (कांड 12)

अथर्ववेद: | सूक्त: 3
दक्षि॑णां॒ दिश॑म॒भि नक्ष॑माणौ प॒र्याव॑र्तेथाम॒भि पात्र॑मे॒तत् । तस्मि॑न्वां य॒मः पि॒तृभिः॑ संविदा॒नः प॒क्वाय॒ शर्म॑ बहु॒लं नि य॑च्छात् ॥ (८)
हे पति और पत्नी! तुम दक्षिण की ओर जा कर इस की प्रदक्षिणा करते हुए आओ. असमय पितरों से सहमत हुए यमराज तुम्हारे ओदन के लिए अनेक प्रकार के कल्याण प्रदान करें. (८)
O husband and wife! You go south and come circumambulating it. Yamraj, who agreed with the untimely ancestors, should provide many types of welfare for your odan. (8)
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