हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 12.3.29

कांड 12 → सूक्त 3 → मंत्र 29 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 12)

अथर्ववेद: | सूक्त: 3
उद्यो॑धन्त्य॒भि व॑ल्गन्ति त॒प्ताः फेन॑मस्यन्ति बहु॒लांश्च॑ बि॒न्दून् । योषे॑व दृ॒ष्ट्वा पति॒मृत्वि॑यायै॒तैस्त॑ण्डु॒लैर्भ॑वता॒ समा॑पः ॥ (२९)
ताप देने पर ये जल शब्द करते हैं तथा बूंदों को उड़ाते हुए युद्ध सा करते हैं. हे जलो! जिस प्रकार पति को देख कर पत्नी उस से मिल जाती है, उसी प्रकार तुम ऋतु में होने वाले यज्ञ के निमित्त चावलों में मिल जाओ. (२९)
When heated, they do the word water and fly the droplets and fight. O burn! Just as the wife meets the husband after seeing him, in the same way, you should join the rice for the yagna in the season. (29)