हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 12.3.30

कांड 12 → सूक्त 3 → मंत्र 30 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 12)

अथर्ववेद: | सूक्त: 3
उत्था॑पय॒ सीद॑तो बु॒ध्न ए॑नान॒द्भिरा॒त्मान॑म॒भि सं स्पृ॑शन्ताम् । अमा॑सि॒ पात्रै॑रुद॒कं यदे॒तन्मि॒तास्त॑ण्डु॒लाः प्र॒दिशो॒ यदी॒माः ॥ (३०)
हे ओदन की अधिष्ठात्री देवी! मूसल की जड़ से व्यथित होते हुए इन चावलों को उठाओ. ये जल से मिलें. हे यजमान! तू जल को पात्रों द्वारा नाप रहा है. इधर ये चावल भी नप गए हैं. इन्हें जल में डालने की अनुज्ञा प्रदान कर. (३०)
O Goddess of Odan! Pick up these rice while being distressed by the root of the pestle. Meet these water. O host! You are measuring water through vessels. Here these rice have also been boiled. By allowing them to be put in water. (30)