हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 12.3.35

कांड 12 → सूक्त 3 → मंत्र 35 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 12)

अथर्ववेद: | सूक्त: 3
ध॒र्ता ध्रि॑यस्व ध॒रुणे॑ पृथि॒व्या अच्यु॑तं॒ त्वा दे॒वता॑श्च्यावयन्तु । तं त्वा॒ दंप॑ती॒ जीव॑न्तौ जी॒वपु॑त्रा॒वुद्वा॑सयातः॒ पर्य॑ग्नि॒धाना॑त् ॥ (३५)
हे ओदन! तू धारण करने वाला है. इसलिए भूमि के स्थान में प्रतिष्ठित हो. तू अच्युत है, देवता तुझे च्युत न करें. जीवित पुत्रों वाले पतिपत्नी तुझे धान के द्वारा पुष्ट करें. (३५)
O O O O Son! You are going to wear. Therefore, be distinguished in the location of the land. You are unseen, god, do not forgive you. May the husband and wife with living sons strengthen you with paddy. (35)