अथर्ववेद (कांड 12)
स्व॑धाका॒रेण॑ पि॒तृभ्यो॑ य॒ज्ञेन॑ दे॒वता॑भ्यः । दाने॑न राज॒न्यो व॒शाया॑ मा॒तुर्हेडं॒ न ग॑च्छति ॥ (३२)
पितरों के लिए स्वधा करने से, देवताओं के विभिन्न यज्ञ करने से तथा वशा का दान करने से क्षत्रिय अपनी माता का क्रोध प्राप्त नहीं करता है. (३२)
By doing swadha for the ancestors, performing various yagyas of the gods and donating vashas, the Kshatriya does not get the wrath of his mother. (32)