हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 12.4.42

कांड 12 → सूक्त 4 → मंत्र 42 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 12)

अथर्ववेद: | सूक्त: 4
तां दे॒वा अ॑मीमांसन्त व॒शेया३मव॒शेति॑ । ताम॑ब्रवीन्नार॒द ए॒षा व॒शानां॑ व॒शत॒मेति॑ ॥ (४२)
उस समय देवताओं ने यह कहा कि यह वशा अवशा है अर्थात्‌ इस पर किसी का अधिकार नहीं है. नारद ने उसे वशाओं में परम वशा अर्थात्‌ सब से वही वशा बनाया. (४२)
At that time, the gods said that this is Vasha Avsha, that is, no one has a right over it. Narada made him the most powerful of the worlds, that is, the same vasha from all. (42)