अथर्ववेद (कांड 13)
यं त्वा॒ पृष॑ती॒ रथे॒ प्रष्टि॒र्वह॑ति रोहित । शु॒भा या॑सि रि॒णन्न॒पः ॥ (२१)
हे सूर्य! हिरणियों का समूह तुम्हें रथ में धारण करता है. तुम जलों में चलते हुए कल्याण के निमित्त गति करते हो. (२१)
O sun! A group of deer holds you in the chariot. You walk in the waters and move for welfare. (21)