अथर्ववेद (कांड 13)
वि रोहि॑तो अमृशद्वि॒श्वरू॑पं समाकुर्वा॒णः प्र॒रुहो॒ रुह॑श्च । दिवं॑ रू॒ढ्वा म॑ह॒ता म॑हि॒म्ना सं ते॑ रा॒ष्ट्रम॑नक्तु॒ पय॑सा घृ॒तेन॑ ॥ (८)
रूह और प्ररूह अर्थात् उगने वाले लता वृक्ष आदि को भलीभांति प्रकट करने वाले सूर्य ने सब शरीरों का स्पर्श किया. हे यजमान! वे सूर्य अपने महत्त्व से तेरे राष्ट्र को घृत और दूध से संपन्न करें. (८)
The sun, which expressed the soul and praruh i.e. the creeper tree that grows, etc., touched all the bodies. O host! May those suns, by their importance, fill your nation with ghee and milk. (8)