हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 13.2.3

कांड 13 → सूक्त 2 → मंत्र 3 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 13)

अथर्ववेद: | सूक्त: 2
यत्प्राङ्प्र॒त्यङ्स्व॒धया॒ यासि॒ शीभं॒ नाना॑रूपे॒ अह॑नी॒ कर्षि॑ मा॒यया॑ । तदा॑दित्य॒ महि॒ तत्ते॒ महि॒ श्रवो॒ यदेको॒ विश्वं॒ परि॒ भूम॒ जाय॑से ॥ (३)
हे सूर्य देव! तुम अन्नमय स्वधा अर्थात्‌ हवियों के साथ पूर्व और पश्चिम दिशाओं को गमन करते हो. तुम अपने तेज से दिवस और रात्रि को भिन्नभिन्न रूपों वाला बनाते हो. हे सूर्य देव! यह तुम्हारी बहुत बड़ी महिमा है, जो तुम अकेले पूरे संसार को प्रभावित करते हो. (३)
O Sun God! You travel in the east and west directions with annamaya swadha i.e. havis. You make day and night different with your radiance. O Sun God! This is your great glory, which you alone affect the whole world. (3)