हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 13.2.31

कांड 13 → सूक्त 2 → मंत्र 31 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 13)

अथर्ववेद: | सूक्त: 2
अ॒र्वाङ्प॒रस्ता॒त्प्रय॑तो व्य॒ध्व आ॒शुर्वि॑प॒श्चित्प॒तय॑न्पत॒ङ्गः । विष्णु॒र्विचि॑त्तः॒ शव॑साधि॒तिष्ठ॒न्प्र के॒तुना॑ सहते॒ विश्व॒मेज॑त् ॥ (३१)
दक्षिण की ओर जाते हुए सूर्य अपना मार्ग शीघ्र ही पूरा कर लेते हैं. ये व्यापक देव परम ज्ञानी हैं. ये अपनी शक्ति से अधिष्ठित होते हैं. ये अपने ज्ञान के बल से समस्त विश्व को अपने वश में कर लेते हैं. (३१)
While going towards the south, the sun completes its path soon. These broad gods are the most knowledgeable. They are installed with their power. They control the whole world with the strength of their knowledge. (31)