हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 13.3.25

कांड 13 → सूक्त 3 → मंत्र 25 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 13)

अथर्ववेद: | सूक्त: 3
एक॑पा॒द्द्विप॑दो॒ भूयो॒ वि च॑क्रमे॒ द्विपा॒त्त्रिपा॑दम॒भ्येति प॒श्चात् । चतु॑ष्पाच्चक्रे॒ द्विप॑दामभिस्व॒रे सं॒पश्य॑न्प॒ङ्क्तिमु॑प॒तिष्ठ॑मानः । तस्य॑ दे॒वस्य॑ क्रु॒द्धस्यै॒तदागो॒ य ए॒वं वि॒द्वांसं॑ ब्राह्म॒णं जि॒नाति॑ । उद्वे॑पय रोहित॒ प्र क्षि॑णीहि ब्रह्म॒ज्यस्य॒ प्रति॑ मुञ्च॒ पाशा॑न् ॥ (२५)
यह देव एक पैर वाला होने पर भी दो पैर वालों से तेज दौड़ता है, दो पैरों वाला तीन पैरों वालों के पीछे चलता है. चार पैरों वाला दो पैरों वालों तथा एक स्वर में रहने वालों की पंक्ति में देखता हुआ उन से सेवा लेता है. ऐसे उन क्रोधवंत देव के अपराधी तथा विद्वान्‌ ब्राह्मण के हिंसक ब्रह्मघाती को हे रोहितदेव! तुम कंपित करते हुए क्षीण बनाओ और उसे अपने दृढ़ पाशों से बांध लो. (२५)
This Dev runs faster than two-legged even if he is one-legged, two-legged three-legged people. The four-legged man takes service from them by looking into the row of two-legged and those who live in one voice. O Rohitdev to the criminal of such an angry God and the violent brahmaghati of the learned Brahmin! You stagger, make it weak and tie it to your firm loops. (25)