अथर्ववेद (कांड 13)
यस्मि॑न्वि॒राट्प॑रमे॒ष्ठी प्र॒जाप॑तिर॒ग्निर्वै॑श्वान॒रः स॒ह प॒ङ्क्त्या श्रि॒तः । यः पर॑स्य प्रा॒णं प॑र॒मस्य॒ तेज॑ आद॒दे । तस्य॑ दे॒वस्य॑ क्रु॒द्धस्यै॒तदागो॒ य ए॒वं वि॒द्वांसं॑ ब्राह्म॒णं जि॒नाति॑ । उद्वे॑पय रोहित॒ प्र क्षि॑णीहि ब्रह्म॒ज्यस्य॒ प्रति॑ मुञ्च॒ पाशा॑न् ॥ (५)
जिस में विराट परमेष्ठी वैश्वानर पंक्ति, प्रजा और अग्नि सहित निवास करते हैं, जिस ने उत्कृष्ट प्राण के महान तेज को धारण किया है, उन क्रोधवंत देवता के अपराधी तथा विद्वान् ब्राह्मण के हिंसक को हे रोहित देव! कंपित करते हुए क्षीण करो तथा अपने बंधन में बांध लो. (५)
In which Virat Parmeshti Resides with Vaishvanar Row, Subjects and Agni, who has possessed the great glory of the excellent soul, the criminal of those angry gods and the violent of the learned Brahmin, O Rohit Dev! Weaken by staggering and tie in your bond. (5)