अथर्ववेद (कांड 14)
अ॒हं विष्या॑मि॒मयि॑ रू॒पम॑स्या॒ वेद॒दित्प॑श्य॒न्मन॑सः कु॒लाय॑म् । न स्तेय॑मद्मि॒मन॒सोद॑मुच्ये स्व॒यं श्र॑थ्ना॒नो वरु॑णस्य॒ पाशा॑न् ॥ (५७)
मैं इस के हृदय को जानता हुआ तथा उस के रूप को देखता हुआ अपने से आबद्ध करता हूं. मैं चोरी का काम नहीं करता. मैं स्वयं मन लगा कर तेरे केशों को गूंथता हुआ तुझे वरुण के पाशों से मुक्त करता हूं. (५७)
I bind to me knowing his heart and seeing his form. I don't steal. I myself, kneading your hair and freeing you from the traps of Varuna. (57)