हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 14.2.44

कांड 14 → सूक्त 2 → मंत्र 44 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 14)

अथर्ववेद: | सूक्त: 2
नवं॒ वसा॑नःसुर॒भिः सु॒वासा॑ उ॒दागां॑ जी॒व उ॒षसो॑ विभा॒तीः । आ॒ण्डात्प॑त॒त्रीवा॑मुक्षि॒विश्व॑स्मा॒देन॑स॒स्परि॑ ॥ (४४)
मैं नवीन वस्त्र धारण करता हूं. सुगंध धारण कर के उत्तम वस्त्र पहनने वाला मैं जीवधारी मनुष्यों के समान उषा काल में उठता हूं. जिस प्रकार पक्षी अंडे से निकलता है, उसी प्रकार मैं भी सब पापों से छूट जाऊं. (४४)
I wear new clothes. I wake up in the usha period like living beings, who wear the fragrance and wear the best clothes. Just as a bird comes out of an egg, so may I also be free from all sins. (44)