हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 14.2.45

कांड 14 → सूक्त 2 → मंत्र 45 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 14)

अथर्ववेद: | सूक्त: 2
शुम्भ॑नी॒द्यावा॑पृथि॒वी अन्ति॑सुम्ने॒ महि॑व्रते । आपः॑ स॒प्त सु॑स्रुवुर्दे॒वीस्ता नो॑मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥ (४५)
शोभित पृथ्वी और आकाश के मध्य चेतन और अचेतन दोनों प्रकार के प्राणी निवास करते है. विशाल कर्म वाले आकाश और पृथ्वी तथा ये प्रवाहित होने वाले सात प्रकार के जल हमें पापों से मुक्त करें. (४५)
Both conscious and unconscious beings reside between the earth and the sky. May the sky and earth with great deeds and the seven types of water that flow free us from sins. (45)