हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद (कांड 15)

अथर्ववेद: | सूक्त: 1
व्रात्य॑आसी॒दीय॑मान ए॒व स प्र॒जाप॑तिं॒ समै॑रयत् ॥ (१)
व्रात्य अर्थात्‌ समूहों का हित करने वाला समूहपति सब का प्रेरक था. भग ने प्रजापालक को उत्तम प्रेरणा दी. (१)
Vratya i.e. the group husband who benefited the groups was the motivator of everyone. Bhaga gave great inspiration to the people. (1)

अथर्ववेद (कांड 15)

अथर्ववेद: | सूक्त: 1
स प्र॒जाप॑तिःसु॒वर्ण॑मा॒त्मन्न॑पश्य॒त्तत्प्राज॑नयत् ॥ (२)
उस प्रजापति ने आत्मा को उत्तम तेज से युक्त किया तथा उस ने सब को उत्पन्न किया. (२)
That Prajapati equiped the soul with the best radiance and he created everyone. (2)

अथर्ववेद (कांड 15)

अथर्ववेद: | सूक्त: 1
तदेक॑मभव॒त्तल्ल॒लाम॑मभव॒त्तन्म॒हद॑भव॒त्तज्ज्ये॒ष्ठम॑भव॒त्तद्ब्रह्मा॑भव॒त्तत्तपो॑ऽभव॒त्तत्स॒त्यम॑भव॒त्तेन॒ प्राजा॑यत ॥ (३)
वह विलक्षण तथा विशाल हुआ. वह श्रेष्ठ ब्रह्म हुआ. वह तपाने वाला तथा सत्य हुआ. उस के द्वारा यह विश्व प्रकट हुआ. (३)
He became extraordinary and huge. He became the best Brahman. It was hot and true. Through that this world appeared. (3)

अथर्ववेद (कांड 15)

अथर्ववेद: | सूक्त: 1
सोऽव॑र्धत॒ सम॒हान॑भव॒त्स म॑हादे॒वोऽभ॑वत् ॥ (४)
वह वृद्धि को प्राप्त हुआ. वही महान और महादेव हुआ. (४)
He received the rise. He became great and Mahadev. (4)

अथर्ववेद (कांड 15)

अथर्ववेद: | सूक्त: 1
स दे॒वाना॑मी॒शांपर्यै॒त्स ईशा॑नोऽभवत् ॥ (५)
वह देवों का स्वामी एवं ईशान हुआ. (५)
He became the swami of the gods and ishan. (5)

अथर्ववेद (कांड 15)

अथर्ववेद: | सूक्त: 1
स ए॑कव्रा॒त्योऽभ॑व॒त्स धनु॒राद॑त्त॒ तदे॒वेन्द्र॑ध॒नुः ॥ (६)
वह एक व्रात्य अर्थात्‌ समूहों का स्वामी हुआ. उस ने धनुष उठाया और वह इंद्रधनुष बन गया. (६)
He became the master of a vratya i.e. groups. He raised the bow and he became a rainbow. (6)

अथर्ववेद (कांड 15)

अथर्ववेद: | सूक्त: 1
नील॑मस्यो॒दरं॒लोहि॑तं पृ॒ष्ठम् ॥ (७)
उस का पेट नीला और पीठ लाल है. (७)
His stomach is blue and his back is red. (7)

अथर्ववेद (कांड 15)

अथर्ववेद: | सूक्त: 1
नीले॑नै॒वाप्रि॑यं॒ भ्रातृ॑व्यं॒ प्रोर्णो॑ति॒ लोहि॑तेन द्वि॒षन्तं॑ विध्य॒तीति॑ब्रह्मवा॒दिनो॑ वदन्ति ॥ (८)
वह नीले भाग से अप्रिय शत्रु को घेरता है तथा अपने लाल भाग से द्वेष करने वालों को वेधता है. ऐसा ब्रह्मवादी जन कहते हैं. (८)
He surrounds the unpleasant enemy with the blue part and pierces those who hate his red part. This is what the Brahmavadi people say. (8)