हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद (कांड 15)

अथर्ववेद: | सूक्त: 11
तद्यस्यै॒वंवि॒द्वान्व्रात्योऽति॑थिर्गृ॒हाना॒गच्छे॑त् ॥ (१)
स्वयमेनमभ्युदेत्य ब्रूयाद्‌ व्रात्य क्वा वात्सीर्ब्रात्योदकं व्रात्य तर्पयन्तु व्रात्य यथा ते.. इस प्रकार का विशेष ज्ञानी व्रात्य जिस घर में अतिथि हो, उसे स्वयं आसन दे कर कहे - हे व्रात्य! तुम कहां निवास करते हो? यह जल है. हमारे घर के व्यक्ति तुम्हें संतुष्ट करें. तुम्हें जो प्रिय हो, जेसा तुम्हारा वश हो और जैसा तुम्हारा काम हो उसी प्रकार का रहे. (१)
Swayammenambhudetya Bruyadvratya Kva Vatsirbratyodakam Vratya Tarpayantu Vratya Yata.. This kind of special wise person should give himself a seat to the house in which he is a guest and say- O Vratya! Where do you live? It's water. May the person of our house satisfy you. Whatever is dear to you, as it is in your control and as your work is, be the same. (1)

अथर्ववेद (कांड 15)

अथर्ववेद: | सूक्त: 11
स्व॒यमे॑नमभ्यु॒देत्य॑ ब्रूया॒द्व्रात्य॒ क्वावात्सी॒र्व्रात्यो॑द॒कं व्रात्य॑त॒र्पय॑न्तु॒ व्रात्य॒ यथा॑ ते प्रि॒यं तथा॑स्तु॒ व्रात्य॒ यथा॑ ते॒वश॒स्तथा॑स्तु॒ व्रात्य॒ यथा॑ ते निका॒मस्तथा॒स्त्विति॑ ॥ (२)
इस प्रकार का विशेष ज्ञानी व्रात्य जिस घर में अतिथि हो, उसे स्वयं आसन दे कर कहे —हे व्रात्य! तुम कहां निवास करते हो? यह जल है. हमारे घर के व्यक्ति तुम्हें संतुष्ट करें. तुम्हें जो प्रिय हो, जेसा तुम्हारा वश हो और जैसा तुम्हारा काम हो उसी प्रकार का रहे. (२)
This kind of special knowledgeable Vratya, in the house where the guest is a guest, give him a seat and say - O Vratya! Where do you live? It's water. Let the person of our house satisfy you. Whatever you love, as you control and as your work is, it should be the same. (2)

अथर्ववेद (कांड 15)

अथर्ववेद: | सूक्त: 11
यदे॑न॒माह॒व्रात्य॒ क्वावात्सी॒रिति॑ प॒थ ए॒व तेन॑ देव॒याना॒नव॑ रुन्द्धे ॥ (३)
यह कहने पर कि हे व्रात्य! तुम कहां रहोगे? देवयान मार्ग ही खुल जाता है. (३)
On saying that O Swami! Where will you stay? The Devayan route opens. (3)

अथर्ववेद (कांड 15)

अथर्ववेद: | सूक्त: 11
यदे॑न॒माह॑व्रात्योद॒कमित्य॒प ए॒व तेनाव॑ रुन्द्धे ॥ (४)
व्रात्य से यह कहने वाला कि है व्रात्य! यह जल है, अपने लिए जल को ही खोल लेता है. (४)
He is going to say this to the world! It is water, it opens the water for itself. (4)

अथर्ववेद (कांड 15)

अथर्ववेद: | सूक्त: 11
यदे॑न॒माह॒व्रात्य॑ त॒र्पय॒न्त्विति॑ प्रा॒णमे॒व तेन॒ वर्षी॑यांसं कुरुते ॥ (५)
यह कहने वाला कि हमारे व्यक्ति तुम्हें तृप्त करें, अपने ही प्राणों को सींचता है. (५)
The one who says that our person should satisfy you, waters his own souls. (5)

अथर्ववेद (कांड 15)

अथर्ववेद: | सूक्त: 11
यदे॑न॒माह॒व्रात्य॒ यथा॑ ते प्रि॒यं तथा॒स्त्विति॑ प्रि॒यमे॒व तेनाव॑ रुन्द्धे ॥ (६)
ऐसा जानने वाला व्यक्ति प्रिय पुरुष को प्राप्त होता हुआ प्रिय पुरुष का भी प्रिय हो जाता है. (६)
The person who knows this becomes dear to the beloved man as well as the beloved man. (6)

अथर्ववेद (कांड 15)

अथर्ववेद: | सूक्त: 11
ऐनं॑ प्रि॒यंग॑च्छति प्रि॒यः प्रि॒यस्य॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥ (७)
यह कहने वाला कि जैसा तुम्हारा वक्ष है वैसा ही हो, अपने हेतु वक्ष को खोल लेता है. (७)
The one who says that your chest is as it is, opens the chest for himself. (7)

अथर्ववेद (कांड 15)

अथर्ववेद: | सूक्त: 11
यदे॑न॒माह॒व्रात्य॒ यथा॑ ते॒ वश॒स्तथा॒स्त्विति॒ वश॑मे॒व तेनाव॑ रुन्द्धे ॥ (८)
यह कहने वाला कि जैसा तुम्हारी इच्छा है, वैसा ही हो, अपने लिए इच्छाओं को ही खोल लेता है. (८)
The one who says that as you wish, so does, opens up desires for himself. (8)
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