अथर्ववेद (कांड 15)
प्र पि॑तृ॒याणं॒पन्थां॑ जानाति॒ प्र दे॑व॒यान॑म् ॥ (५)
जो इस प्रकार के विद्वान् व्रतधारी की आज्ञा से हवन करता है, वह पितृयान और देवयान मार्ग पर जाता है. (५)
One who performs havan by the order of such a learned fast holder goes on the path of Pitrayana and Devayan. (5)