हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 15.14.17

कांड 15 → सूक्त 14 → मंत्र 17 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 15)

अथर्ववेद: | सूक्त: 14
स यदू॒र्ध्वांदिश॒मनु॒ व्यच॑ल॒द्बृह॒स्पति॑र्भू॒त्वानु॒व्यचलद्वषट्का॒रम॑न्ना॒दं कृ॒त्वा ॥ (१७)
जब वह ऊर्ध्व दिशा की ओर चला, तब वषट्कार को अन्नाद बना कर बृहस्पति बनता हुआ चला. (१७)
When he walked towards the upward direction, he made the successor annad and went on to become Jupiter. (17)