अथर्ववेद (कांड 15)
स यद्दक्षि॑णां॒दिश॒मनु॒ व्यच॑लद्भू॒त्वानु॒व्यचल॒द्बल॑मन्ना॒दं कृ॒त्वा ॥ (३)
जब वह दक्षिण दिशा की ओर गया, तब वह अपने बल को अन्नाद बताता हुआ इंद्र बन कर गमनशील हुआ. (३)
When he went towards the south direction, he became Indra, describing his force as Annad. (3)