अथर्ववेद (कांड 15)
बृ॑ह॒ते च॒ वै सर॑थन्त॒राय॑ चादि॒त्येभ्य॑श्च॒ विश्वे॑भ्यश्च दे॒वेभ्य॒ आ वृ॑श्चते॒ य ए॒वंवि॒द्वांसं॒ व्रात्य॑मुप॒वद॑ति ॥ (३)
उस का सत्कार करने वाला बृहत् साम, रथंतर, सूर्य और सब देवताओं की प्रिय पूर्व दिशा में अपना प्रिय धाम बनाता है. (३)
The one who honors him makes his beloved abode in the east direction dear to the great sama, rathantar, sun and all the gods. (3)