हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 15.2.4

कांड 15 → सूक्त 2 → मंत्र 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 15)

अथर्ववेद: | सूक्त: 2
बृ॑ह॒तश्च॒ वै सर॑थन्त॒रस्य॑ चादि॒त्यानां॑ च॒ विश्वे॑षां च दे॒वानां॑ प्रि॒यं धाम॑ भवति॒ तस्य॒ प्राच्यां॑ दि॒शि ॥ (४)
जो ऐसे विद्वान्‌ व्रतचारी को अपशब्द कहता है, वह बृहत्‌, रथंतर, आदित्य और विश्वे देवों का अपराधी होता है. (४)
The one who abuses such a learned vratchari is the culprit of Brihat, Rathantar, Aditya and Vishwa Devs. (4)