हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 16.8.15

कांड 16 → सूक्त 8 → मंत्र 15 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 16)

अथर्ववेद: | सूक्त: 8
जि॒तम॒स्माक॒मुद्भि॑न्नम॒स्माक॑मृ॒तम॒स्माकं॒ तेजो॒ऽस्माकं॒ ब्रह्मा॒स्माकं॒स्वर॒स्माकं॑य॒ज्ञो॒ऽस्माकं॑ प॒शवो॒ऽस्माकं॑ प्र॒जा अ॒स्माकं॑ वी॒राअ॒स्माक॑म् । तस्मा॑द॒मुं निर्भ॑जामो॒ऽमुमा॑मुष्याय॒णम॒मुष्याः॑ पु॒त्रम॒सौ यः । स आ॑ङ्गिर॒सानां॒ पाशा॒न्मा मो॑चि । तस्येदं वर्च॒स्तेजः॑ प्रा॒णमायु॒र्निवे॑ष्टयामी॒दमे॑नमध॒राञ्चं॑ पादयामि ॥ (१५)
शत्रुओं को घायल कर के लाए हुए तथा जीते हुए सभी पदार्थ हमारे हैं. सत्य, तेज, ब्रह्म, स्वर्ग, पशु, संतान तथा सभी वीर हमारे हैं. अमुक गोत्र वाला तथा अमुक नाम वाली स्त्री के पुत्र को हम इस लोक से दूर करते हैं. वह आंगिरसों अर्थात्‌ अंगिरा गोत्र वालों के बंधन से मुक्त न हो. हम उस के तेज, बल, प्राण और आयु को लपेट कर उसे औँधे मुंह डालते हैं. (१५)
All the things that have been brought and won by injuring the enemies are ours. Truth, glory, Brahman, heaven, animals, children and all heroes are ours. We remove the son of a woman with such a tribe and such a name from this world. He should not be free from the bondage of the Angiras i.e. the Angira tribe. We wrap his glory, strength, life and age and put him blind mouth. (15)