अथर्ववेद (कांड 17)
वि॑षास॒हिंसह॑मानं सासहा॒नं सही॑यांसम् । सह॑मानं सहो॒जितं॑ स्व॒र्जितं॑ गो॒जितं॑संधना॒जित॑म् । ईड्यं॒ नाम॑ ह्व॒ इन्द्रं॑ प्रि॒यः प्र॒जानां॑ भूयासम् ॥ (३)
मैं सहमान अर्थात् दूसरों को दबाने वाले तेज से युक्त, शत्रुओं के उस तेज को जीतने वाले, स्वर्ग के विजेता, शत्रुओं के गाय आदि पशुओं को जीतने वाले तथा जलों पर विजय प्राप्त करने वाले इंद्र रूप सूर्य को मैं बुलाता हूं. उन इंद्र रूप सूर्य की कृपा से मैं प्रजाओं का प्रिय बनूं. (३)
I call the Sun in the form of Indra, who is the one who suppresses others, who conquers that glory of enemies, conquers heaven, conquers enemies' cows, etc. and conquers water. By the grace of those Indra-formed suns, I should become the beloved of the people. (3)