हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 17.1.4

कांड 17 → सूक्त 1 → मंत्र 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 17)

अथर्ववेद: | सूक्त: 1
वि॑षास॒हिंसह॑मानं सासहा॒नं सही॑यांसम् । सह॑मानं सहो॒जितं॑ स्व॒र्जितं॑ गो॒जितं॑संधना॒जित॑म् । ईड्यं॒ नाम॑ ह्व॒ इन्द्रं॑ प्रि॒यः प॑शू॒नां भू॑यासम् ॥ (४)
सहमान अर्थात्‌ दूसरों को दबाने वाले तेज से युक्त, शत्रुओं के उस तेज को जीतने वाले, स्वर्ग के विजेता, शत्रुओं के गाय आदि पशुओं को जीतने वाले तथा जलों पर विजय प्राप्त करने वाले इंद्र रूप सूर्य का मैं प्रातः, सायं तथा मध्याह्न के कर्मों के द्वारा आह्वान करता हूं. उन की कृपा से मैं गाय, भैंस आदि पशुओं का प्रिय बनूं, (४)
I invoke the Sun in the form of Indra, who is the one who suppresses others, conquers that glory of enemies, conquers the conqueror of heaven, conquers enemies' cows, etc. and conquers waters through morning, evening and midday deeds. By their grace, I shall be beloved of animals like cows, buffaloes, etc., (4)