अथर्ववेद (कांड 17)
उदि॒ह्युदि॑हिसूर्य॒ वर्च॑सा मा॒भ्युदि॑हि।यांश्च॒ पश्या॑मि॒ यांश्च॒ न तेषु॑ मा सुम॒तिंकृ॑धि॒ तवेद्वि॑ष्णो बहु॒धा वी॒र्याणि । त्वं नः॑ पृणीहि प॒शुभि॑र्वि॒श्वरू॑पैःसु॒धायां॑ मा धेहि पर॒मे व्योमन् ॥ (७)
हे सूर्य देव! तुम उदय होओ. हे अपने तेज से दूसरों को दबाने वाले सूर्य देव! तुम उदय होओ. मैं जिन को देख रहा हूं और जिन्हें नहीं देख रहा हूं, उन के विषय में मुझे शोभन बुद्धि वाला बनाओ. हे व्यापनशील सूर्य! तुम्हारे वीर्य अर्थात् शक्तियां अंतहीन हैं. तुम मुझे अनेक रूपों वाले अर्थात् गाय, अश्व, भैस आदि पशुओं से पूर्ण करो तथा परम व्योम में जो अमृत है उस में मुझे स्थापित करो. (७)
O Sun God! You rise. O Sun God who suppresses others with his radiance! You rise. Make me with graceful intelligence about what I see and those I don't see. O rainy sun! Your semen i.e. powers are endless. You complete me with animals of many forms, that is, cows, horses, buffaloes, etc. and establish me in the nectar that is in the supreme vyom. (7)