हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 18.1.2

कांड 18 → सूक्त 1 → मंत्र 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 18)

अथर्ववेद: | सूक्त: 1
न ते॒ सखा॑स॒ख्यं व॑ष्ट्ये॒तत्सल॑क्ष्मा॒ यद्विषु॑रूपा॒ भव॑ति । म॒हस्पु॒त्रासो॒ असु॑रस्यवी॒रा दि॒वो ध॒र्तार॑ उर्वि॒या परि॑ ख्यन् ॥ (२)
यम का कथन-मैं तेरा सोदर अर्थात्‌ एक ही पेट से उत्पन्न हुआ तेरा मित्र हूं. पर मैं भाई और बहन के समागम संबंधी मित्र भाव की इच्छा नहीं करता हूं. तू एक उदर से उत्पन्न हो कर भी मेरी पत्नी बनने की कामना करती है. मैं ऐसे मित्रभाव को स्वीकार नहीं करता हूं शत्रुओं को दबाने वाले महाबली रुद्र के पुत्र मरुद्गण भी इस की निंदा करेंगे. (२)
Yama's statement - I am your friend born from your son i.e. one stomach. But I do not wish to be friends with brother and sister. You are born from one stomach and wish to be my wife. I do not accept such friendship, marudgans, sons of Mahabali Rudra, who suppress enemies, will also condemn it. (2)