हरि ॐ

अथर्ववेद (Atharvaved)

अथर्ववेद 18.1.49

कांड 18 → सूक्त 1 → मंत्र 49 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

अथर्ववेद (कांड 18)

अथर्ववेद: | सूक्त: 1
प॑रेयि॒वांसं॑प्र॒वतो॑ म॒हीरिति॑ ब॒हुभ्यः॒ पन्था॑मनुपस्पशा॒नम् । वै॑वस्व॒तं सं॒गम॑नं॒जना॑नां य॒मं राजा॑नं ह॒विषा॑ सपर्यत ॥ (४९)
पृथ्वी को लांघ कर दूर देश में गमन करने वाले अनेक पितरों के मार्ग पर चलने वाले विवस्वान अर्थात्‌ सूर्य के पुत्र मृतकों के धाम रूप यमराज को रखते हैं. (४९)
Vivasvan, the son of the Sun, who walks on the path of many ancestors who cross the earth and travel to a distant country, keeps Yamaraj as the abode of the dead. (49)