अथर्ववेद (कांड 18)
उ॒शन्त॑स्त्वेधीमह्यु॒शन्तः॒ समि॑धीमहि । उ॒शन्नु॑श॒त आ व॑ह पि॒तॄन्ह॒विषे॒अत्त॑वे ॥ (५६)
हे अग्नि! इस पितृ यज्ञ को संपन्न करने के लिए हम तुम्हारी कामना करते हैं तथा तुम्हारा आह्वान करते हैं. तुम भलीभांति प्रदीप्त हो कर स्वधन की इच्छा करने वाले पितरों को लिए हवि भक्षण करने आओ. (५६)
O agni! We wish and call upon you to complete this Pitru Yagya. You should be well illuminated and come to eat for the ancestors who wish for self-wealth. (56)