अथर्ववेद (कांड 18)
को अ॒स्य वे॑दप्रथ॒मस्याह्नः॒ क ईं॑ ददर्श॒ क इ॒ह प्र वो॑चत् । बृ॒हन्मि॒त्रस्य॒ वरु॑णस्य॒धाम॒ कदु॑ ब्रव आहनो॒ वीच्या॒ नॄन् ॥ (७)
यमी-हे यम! हमारे प्रथम दिन को कौन जान रहा है और कौन देख रहा है? फिर कौन पुरुष इस बात को दूसरों से कह सकेगा? दिन मित्र देवता का स्थान है. ये दोनों ही विशाल हैं. इसलिए मेरी इच्छा के प्रतिकूल मुझे क्लेश देने वाले तुम अनेक कर्मों वाले मनुष्यों के संबंध में ऐसा किस प्रकार कहते हो. (७)
Yami- O Yama! Who knows our first day and who is watching? Then which man can say this to others? The day is the place of friendly deity. Both of them are huge. Therefore, how do you say this in relation to men with many deeds who cause me tribulation against My will? (7)