अथर्ववेद (कांड 18)
उप॑हूता नःपि॒तरः॑ सो॒म्यासो॑ बर्हि॒ष्येषु नि॒धिषु॑ प्रि॒येषु॑ । त आ ग॑मन्तु॒ त इ॒हश्रु॑व॒न्त्वधि॑ ब्रुवन्तु॒ तेऽव॑न्त्व॒स्मान् ॥ (४५)
हमारे द्वारा बुलाए गए पितर सोमरस पान के अधिकारी हैं. वे अपनी हवियों के रखे होने पर आएं एवं हमारे इस यज्ञ में हमारे स्तोत्र सुनें, हमारे प्रति पक्षपात पूर्ण वचन करें एवं हमारी रक्षा करें. (४५)
The pitars called by us are the officers of Someras Paan. They should come when their lusts are kept and listen to our hymns in this yagna of ours, make biased promises to us and protect us. (45)